कोरोना को हल्के में लेते हुए लॉक डाऊन में बाहर निकलने वालों का हश्र


एक दिन अचानक बुख़ार आता है ! 
गले में दर्द होता है ! 
साँस लेने में कष्ट होता है ! 
Covid टेस्ट की जाती है ! 
1 दिन तनाव में बीतता है . .  
अब टेस्ट + ve आने पर रिपोर्ट नगर पालिका जाती है ! 
रिपोर्ट से हॉस्पिटल तय होता है ! 
फिर एम्बुलेंस कॉलोनी में आती है ! 
कॉलोनीवासी खिड़की से झाँक कर तुम्हें देखते हैं ! 
कुछ लोग आपके लिए टिप्पणियां करते है ! 
कुछ मन ही मन हँस रहे होते हैं ! 
एम्बुलेंस वाले उपयोग के कपड़े रखने को कहते हैं ! 
बेचारे घरवाले तुम्हें जी भर कर देखते हैं ! 
ओर वो भी टेन्शन में आ जाते है ,
और सोचने लगते है कि अब किसका नम्बर है !?
तुम्हारी आँखों से आँसू बोल रहे होते हैं ! 



तभी . . . 
प्रशासन बोलता है... 
चलो जल्दी बैठो आवाज़ दी जाती है ...
एम्बुलेंस का दरवाजा बन्द . . . 
सायरन बजाते रवानगी . . .  
फिर कॉलोनी वाले बाहर निकलते है ..
फिर कॉलोनी सील कर दी जाती है . . . 
14 दिन पेट के बल सोने को कहा जाता है . . . 
दो वक्त का जीवन योग्य खाना मिलता है . . . 
TV, Mobile सब अदृश्य हो जाते हैं . . 
सामने की खाली दीवार पर अतीत, और भविष्य के दृश्य दिखने लगते..
ओर वहाँ पर बुरे बुरे सपने आने लगते है..
अब आप ठीक हो गए तो ठीक . . .
वो भी जब *3 टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आ जाएँ* . . .
तो घर वापसी . . . 
लेकिन इलाज के दौरान यदि आपके साथ कोई अनहोनी हो गई तो . . .?
तो आपके शरीर को प्लास्टिक के कवर में पैक कर सीधे शवदाहगृह . . . 
शायद अपनों को अंतिमदर्शन भी नसीब नहीं . . . 
कोई अंत्येष्टि क्रिया भी नहीं . . .  
सिर्फ परिजनों को एक *डेथ सर्टिफिकेट..📝
वो भी इसलिए कि वसीयत का नामांतरण करवाने के लिए..
और . . . . खेल खत्म।
बेचारा चला गया . . . 
अच्छा था।
इसलिए बेवजह बाहर मत निकलिए . . .  
घर में सुरक्षित रहिए .  
बाह्यजगत का मोह..
 और हर बात को हल्के में लेने की आदतें त्यागिए . . . 
2020 काम धंधे का, कमाई करने का नहीं है ..
पिछले वर्षों में कमाया उसे खर्च करिए ..
मार्च 20 से दिसम्बर 20 तक 10 माह कमाने का वर्ष नहीं है.. 
जीवन बचाने का वर्ष है ..
जीवन अनमोल है ....
🙏🏻
"कड़वा है किंतु यही सत्य है"

"Lockdown में छूट सरकार ने दी है, कोरोना ने नहीं!!!"