जब कभी बड़े स्तर पर हिंसा हो जाती है तब उसे पहले दिन कवर करना मुश्किल काम होता है. हर किसी के पास अपना एक अलग वीडियो होता है और अलग-अलग दलीलें. हर वीडियो एक अलग कथा की तरफ ले जा रहा होता है. कई कथाएं मिलकर एक गाथा में बदल जाती है. जिसे आप हिंदी में बहस का मुद्दा, वृतांत और अंग्रेजी में नैरेटिव कहते हैं. कल यही हुआ हिंसा से नैरेटिव का वीडियो हाथ लग गया. सारी लड़ाई इसी नैरेटिव को लेकर है. कौन अपनी नैरेटिव को करोड़ों लोगों तक पहुंचाने की क्षमता रखता है. आप समझ सकते हैं. जैसे एक फरवरी को बजट है. लेकिन आप बजट की बात नहीं कर रहे हैं. क्या बात करते हैं? ये तय करता है कि कौन-सा नैरेटिव चलवाया जा रहा है. पिछला पूरा साल बस तीन-चार नैरेटिव में निकल गया. ये साल भी निकल जाएगा... Don't worry